वांछित मन्त्र चुनें

त्वं पु॒रूण्या भ॑रा॒ स्वश्व्या॒ येभि॒र्मंसै॑ नि॒वच॑नानि॒ शंस॑न् । सु॒गेभि॒र्विश्वा॑ दुरि॒ता त॑रेम वि॒दो षु ण॑ उर्वि॒या गा॒धम॒द्य ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvam purūṇy ā bharā svaśvyā yebhir maṁsai nivacanāni śaṁsan | sugebhir viśvā duritā tarema vido ṣu ṇa urviyā gādham adya ||

पद पाठ

त्वम् । पु॒रूणि॑ । आ । भ॒र॒ । सु॒ऽअश्व्या॑ । येभिः॑ । मंसै॑ । नि॒ऽवच॑नानि । शंस॑न् । सु॒ऽगेभिः॑ । विश्वा॑ । दुः॒ऽइ॒ता । त॒रे॒म॒ । वि॒दः । सु । नः॒ । उ॒र्वि॒या । गा॒धम् । अ॒द्य ॥ १०.११३.१०

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:113» मन्त्र:10 | अष्टक:8» अध्याय:6» वर्ग:15» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:10» मन्त्र:10


बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) हे ऐश्वर्यवन् राजन् ! तू (पुरूणि) बहुत (स्वश्व्या) श्रेष्ठ घोड़ों से युक्त बलों को-धनों को (आ भर) सम्पादित कर (येभिः) जिनके द्वारा-जिनको देखकर (निवचनानि) नम्रवचनों को (शंसन्) प्रशंसित करते हुए (मंसै) सुख मानूँ (सुगेभिः) सुगम धन बल उपायों से (विश्वा) सारे (दुरिता) दुःखों को (तरेम) पार करें (अद्य) इस अवसर पर (नः) हमारे लिये (उर्विया) बहुत महत्त्वपूर्ण (गाधम्) प्रतिष्ठापद को (सुविद-उ) भलीभाँति प्राप्त हो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - राजा के राजपद पर प्रतिष्ठित होते समय प्रजा के प्रतिनिधि जन और विद्वान् राजा को प्रेरित करें, अच्छे घोड़े आदि यान्त्रिक संग्रामसाधनों से बल और धन का उपार्जन करें, उन्हें देखकर प्रशंसा करें और राजपद पर भलीभाँति प्रतिष्ठित हों, ऐसी आशा और आशीर्वाद के वचन बोलें ॥१०॥
बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वं पुरूणि स्वश्व्या-आ भर) हे इन्द्र-ऐश्वर्यवन् राजन् ! त्वं बहूनि श्रेष्ठाश्वयुक्तानि-बलानि धनानि सम्पादय (येभिः) यैः (निवचनानि-शंसन् मंसै) नम्रवचनानि प्रशंसमानः सुखं मन्ये “मनधातोः-लोटि विकरणस्य लुक्” (सुगेभिः) सुगमैः-धन-बलोपायैः (विश्वा दुरिता तरेम) सर्वाणि दुःखानि पारयेम (अद्य) अस्मिन्नवसरे काले वा (नः) अस्मभ्यं (उर्विया गाधं सु विद-उ) बहुमहत्त्वपूर्णं सुप्रतिष्ठपदं प्राप्नुहि ॥१०॥